भारत में आर्थिक स्थिति
भारत की इकॉनमी हर साल झूलती रहती है। कभी ग्रोथ रॉकेट की तरह ऊपर जाती है, तो कभी मंदी आकर सब ठंडा कर देती है। लोग जॉब्स की तलाश में लगे रहते हैं, तो कुछ बिजनेस जमाने में जुटे होते हैं। लेकिन महंगाई का मीटर हमेशा हाई रहता है। पेट्रोल, प्याज और मकान के रेंट—सबका दाम आसमान छू रहा है। सरकारी नीतियाँ बदलती रहती हैं, लेकिन आम आदमी को फ़र्क़ कम ही पड़ता है। मिडिल क्लास हमेशा बैलेंस बनाने में लगा रहता है, और गरीब…उसे तो संघर्ष की आदत हो चुकी है।
भारतीय नागरिक और औसत संपत्ति
अब देखो, भारत में लोगों के पास संपत्ति है, लेकिन सबके पास बराबर नहीं है। कोई मॉल में एक बार में लाखों फूँक देता है, तो किसी के लिए महीने का बजट 10 हज़ार से ज़्यादा नहीं बढ़ता। गाँवों में लोग खेती पर निर्भर हैं, तो शहरों में नौकरियों पर। और वही पुरानी स्टोरी—अमीर और अमीर बनता जा रहा है, और गरीब अपने हाल पर ही बना हुआ है। मिडिल क्लास का हाल बीच में लटका हुआ है, कभी कर्ज़ चुकाने में लगा रहता है, कभी सेविंग्स बनाने में।
अन्य देशों की तुलना में भारत की संपत्ति
अमेरिका, जापान, और यूरोप के कुछ देशों में औसत नागरिक की नेट वर्थ भारत से कई गुना ज़्यादा होती है। वहाँ मिनिमम वेज भी अच्छी-खासी होती है। भारत में लोग टैक्स बचाने के जुगाड़ में लगे रहते हैं, और वहीं बाहर लोग सरकारी लाभों का खुला फायदा उठाते हैं। भारत में लोग अपने पैसों को सोने और ज़मीन में डालते हैं, जबकि पश्चिमी देशों में लोग स्टॉक्स और बैंकों में ज्यादा भरोसा रखते हैं।
भारतीय और जुए की समझ
जुआ भारत में कोई नई चीज़ नहीं है। महाभारत से लेकर सट्टा बाजार तक, लोग रिस्क लेना पसंद करते हैं। यहाँ शादी-ब्याह में ताश के पत्तों की बाज़ी लगती है, तो दिवाली में ‘तीन पत्ती’ का अलग ही क्रेज़ रहता है। क्रिकेट का सीजन आते ही सट्टा मार्केट गरम हो जाता है। बस, नाम बदलते रहते हैं—लॉटरी, रमी, बैटिंग, कैसीनो, और अब ऑनलाइन जुआ।
भारतीयों की असली जुआ आदतें
देखो, सच बोलें तो यहाँ लोग जुए में एक्सपर्ट हैं। चाहे ताश का खेल हो या आईपीएल की सट्टेबाज़ी, हर कोई ‘अंदर की खबर’ का इंतज़ार करता है। हर नुक्कड़ पर कोई न कोई ‘फिक्स्ड’ मैच की बातें कर रहा होता है। कुछ लोग छोटे-मोटे दाँव लगाते हैं, तो कुछ अपनी ज़िन्दगी के सेविंग्स भी झोंक देते हैं। आदत बस ऐसी है कि कुछ नहीं कर सकते।
भारत में ऑनलाइन जुए का इतिहास
पहले जुआ ज़मीन पर खेला जाता था—कसीनो, क्लब्स, या फिर दोस्तों की बैठकों में। फिर आया इंटरनेट! अब जुए के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं। स्मार्टफोन उठाओ, ऐप खोलो और शुरू हो जाओ। ऑनलाइन जुआ प्लेटफॉर्म्स ने चीज़ें और आसान बना दीं। पहले लॉटरी और सट्टा चलता था, अब वर्चुअल फुटबॉल, पोकर, और फैंटेसी लीग्स का दौर है। सरकार कभी-कभी रोक लगाने की कोशिश करती है, लेकिन लोग भी रास्ता निकाल ही लेते हैं।
नतीजा?
भारत की इकॉनमी और जुआ की दुनिया साथ-साथ चलती रहती है। लोग पैसा कमाते भी हैं और उड़ाते भी हैं। कुछ सोच-समझकर इन्वेस्ट करते हैं, तो कुछ ‘बस एक दाँव और’ वाली मानसिकता में फँस जाते हैं। मज़ा आता है, लेकिन जोखिम भी उतना ही बड़ा होता है।